बिहार में स्थित मुंडेश्वरी मंदिर : जहां बलि के बाद भी जिंदा रहते हैं बकरे

मुंडेश्वरी देवी मंदिर बिहार के कैमूर जिले के कौर में मुंडेश्वरी पहाड़ियों पर स्थित है। यह एक बहुत प्राचीन मंदिर है, इसे बिहार के सबसे पुराने हिंदू मंदिरों में से एक माना जाता है। इसे दुनिया का 'सबसे पुराना कार्यात्मक' मंदिर भी माना जाता है। मंदिर में मां मुंडेश्वरी की एक मूर्ति है और मूर्ति के सामने मुख्य द्वार की ओर एक प्राचीन शिवलिंग है। यह मंदिर अष्टकोणीय आकार में है, इस मंदिर में तंत्र पंथ की कुछ प्रथाएं प्रचलित होने की भी लोककथा है, हमारे देश में ज्यादातर देवी मंदिरों में शक्ति उपासना व तंत्र उपासना की परंपरा प्रचलित है, माँ मुंडेश्वरी मंदिर में भी इस परंपरा का प्रचालन है।

भगवान शिव व मां मुंडेश्वरी के अलावा, मंदिर में गणेश भगवान, सूर्य भगवान, विष्णु भगवान सहित हिंदू धर्म के कई अन्य देवी देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं। मुंडेश्वरी मंदिर 108ई0 में बनाया गया था। तब से मंदिर में बिना विराम के पूजा अर्चना होती आ रही है, इस प्रकार यह दुनिया का सबसे पुराना कार्यात्मक मंदिर बन गया है।

वैसे तो हर शक्तिपीठ की अलग परंपरा, मान्यता व पहचान है, लेकिन मां मुंडेश्वरी के मंदिर में कुछ ऐसा होता है जिस जिसे सुनकर इंसानी मस्तिष्क विकल्प नहीं तालाश पाता है व उसकी उत्सुकता और बढ़ जाती है।

श्रद्धालुओं की मान्यताओं के अनुसार मंदिर में बकरे(खस्सी) के बलि देने की प्रक्रिया काफी अलग है, कहते हैं की मंदिर में बकरे(खस्सी) की बलि खांर(धारदार हथियार) से नहीं दी जाती बल्कि यहां बकरे को देवी के समक्ष लाया जाता है, जिस पर पुजारी मंत्रयुक्त चावल छिड़कते हैं, जिससे वह मूर्छित हो जाता है, फिर मूर्छा से बाहर आने के बाद बकरे(खस्सी) को बाहर छोड़ दिया जाता है। 

Previous Post Next Post